माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी के संबंध में जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उनका व्यक्तित्व इतना विशाल है कि उनके संबंध में कुछ भी बता पाना सूरज को दीपक दिखाने के समान है। इतना विशाल कद होने के बावजूद उन्होंने सभी को कुछ न कुछ दिया ही है, अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगा यह उनका बड़प्पन है। ठेंगड़ी जी अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जिस समाज को उन्होंने अपने खून-पसीने से सींचकर बड़ा किया उसे रोता-बिलखता असहाय छोड़कर चले गए।

भारतीय किसान संघ की स्थापना श्रद्धेय श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी ने 4 मार्च, 1978 के दिन की थी। संगठन पर काबू रखने के उद्देश्य से पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत कार्यक्रम का एक ग्रुप-अध्यक्ष, महामंत्री बनने के लिए तैयार होकर आया था, उन्होंने बहुत हल्ला-गुल्ला भी मचाया, माननीय दत्तोपंत जी ने निरस्त कर दिया तथा जिनकी बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी, ऐसे व्यक्ति पुरूषोतम भाटिया जी को भारतीय किसान संघ का अध्यक्ष बना दिया। जो अधिकार से पद मांगे तथा युक्ति करके अधिकारी बनने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को पद नहीं देना ऐसी मान्यता के चलते एक योग्य व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया।

अखिल भारतीय अध्यक्ष मा० पुरुषोत्तम दास जी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता था, तो दूसरे ही अधिवेशन में सरदार प्यारा सिंह को अध्यक्ष बना दिया। उनके स्वर्गवास के पश्चात भारतीय किसान संघ के उपाध्यक्ष मा० अन्ना साहिब पाटील को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। तीसरा अधिवेशन सांकेत, अयोध्या मे संपन्न हुआ। इस अधिवेशन के समय 14 अप्रैल, 1990 को भा० कि० संघ के अध्यक्ष का चुनाव हुआ, उसमें मध्य प्रदेश के एक कार्यकर्ता का नाम आया वह कार्यकर्ता किसान संघ में कार्य कर रहा था। बाद में वह एम. एल. ए. का चुनाव लड़ा और जीत गया। जब दूसरी बार हार गया और फिर किसान संघ के चुनाव में अ. भा. अध्यक्ष के नाते खड़ा हुआ उसका नाम निरस्त कर दिया। माननीय दत्तोपंत जी ने यह सिद्धांत बनाया था कि राजकीय क्षेत्र में एक पदाधिकारी बनने के बाद वह किसान संघ में पदाधिकारी नहीं बन सकता और यदि जो पद मांगता है उसको कतई नहीं देना बल्कि उसका नाम ही वास्तव में निरस्त कर देना, यही उनका सिद्धांत था।

अप्रैल 1990 में भारतीय किसान संघ के अधिवेशन में संघ की योजना अनुसार निगरानी के लिए मुझे वहां भेजा गया था। उस समय मैं गुजरात का सह प्रांत संघ चालक था। मैंने कोई पद मांगा नहीं था, जानकारी भी नहीं थी, फिर भी सर्वानुमति से मुझे भा० कि० संघ के अध्यक्ष पद के लिए चुना गया। 1994, 1998 और 2001 में तीनों बार मैंने पद से निवृत्त होने के लिए विनती की, विशेष आग्रह किया लेकिन मा० दत्तोपंत जी ने कभी स्वीकार नहीं किया। श्री ठेंगड़ी जी के निर्देश पर ही मैं 14 वर्ष से भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष के पद पर कार्य कर रहा हूँ।

श्री ठेगड़ी जी समय की परिस्थिति और व्यवहारिकता को भली प्रकार से समझते थे, कब क्या निर्णय करना है, उन्हें अच्छी तरह आता था। वर्ष 2004 में ऑर्गेनिक फार्मिंग एण्ड इम्पैक्ट ऑफ डब्ल्यू टी ओ ऑन यूएसए फार्मिंग के सम्मेलन में अपने कुटुम्ब के सदस्यों से मिलने की मैंने श्री ठेंगड़ी जी से अनुमति मांगी क्योंकि मेरे बड़े पुत्र का कुटुम्ब न्यू जर्सी में रहता था। यह पहला मौका था जब श्री ठेंगडी जी ने मुझे जाने की अनुमति दे दी, जबकि इससे पहले 1992, 1995 तथा 2001 में जाने की इच्छा व्यक्त की थी लेकिन उस समय अनुमति नहीं दी थी। किसान संघ के कई वरिष्ठ व अच्छे कार्यकर्ताओं ने अध्यक्ष बनने की अनुमति मांगी थी, श्रद्धेय दत्तोपंत जी ने स्नेहपूर्वक ना बोल दिया, जो मांगे उसे नहीं देना।

भारतीय किसान संघ का कार्यालय लखनऊ में था। अखिल भारतीय मंत्री-उपाध्यक्ष श्री विगोरे उत्तर प्रदेश के थे। मा० दत्तोपंत जी की इच्छा दिल्ली में केन्द्रीय कार्यालय खोलने की थी। मैंने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद राष्ट्रीय कार्यालय झण्डेवाला दिल्ली में रख लिया। उस समय मा० दत्तोपंत जी साउथ एवेन्यू में मुझे भोजन के लिए बुलाते थे। भोजन करने के बाद अपनी थाली वे खुद उठा लेते थे और मेरी थाली मुझे नहीं उठाने देते। मुझे प्रेम से बोलते थे आप तो गुजरात के सह प्रांत संघचालक हो।

एक बार अपना अनुभव बताते हुए श्री ठेंगड़ी जी मुझे बताया कि 'जब मैं नागपुर में कॉलेज में पढ रहा था और प० पूज्य गुरूजी के निवास स्थान पर रहता था। मेरे कॉलेज का समय सुबह 7.30 का था। मैं उठकर शुद्ध होकर माताजी के पास जाकर चाय पीकर कॉलेज चला जाता था। जब दोपहर को घर आता तो देखता मेरी पथारी (शैया) ठीक करके फोल्डिंग करके रख दी जाती थी। मैं सोचता माता जी कमरा साफ करते समय मेरी पथारी फोल्डिंग करके रख जाती होंगी। एक दिन चाय पीकर घर से जल्दी में निकला लेकिन किताबें भूल गया। पुस्तकें लेने के लिए घर वापस आया तो मैंने देखा परम् पूज्य गुरूजी मेरी पथारी फोल्ड करके बांध रहे थे। यह देखकर मेरा जीवन बदल गया। परम पूज्य गुरूजी छ महीने से मेरी पथारी फोल्ड कर रहे थे और मुझे यह पता भी नहीं लगने देते। उसी दिन मैंने पूरा समय संघ कार्य में व्यतीत करने का निर्णय कर लिया।

मा० दत्तोपंत जी की इच्छानुसार विजय दशमी के दिन विधिवत यज्ञ करके हमने साउथ एवेन्यू के ए ब्लॉक में कार्यालय शुरू किया। दिल्ली प्रांत के 50 से अधिक किसान कार्यकर्ता आए थे। दत्तोपंत जी ने श्रीफल फोड़कर अपने हाथों से उसके जल का छिड़काव किया। ऐसा कर वे अत्यत प्रसन्न हुए। हरेक कार्यकर्ता को अपने हाथ से मिठाई दी। यह सुनकर कि किसान बहुत दुःखी हैं, आत्महत्या कर रहे हैं, मा० दत्तोपंत जी बहुत द्रवित हो जाते और उनकी आँखों मे आंसू आ जाते थे। उन्होंने विचार किया कि किसानों को लागत मूल्य आधारित खेत उत्पादन की आय मिलनी चाहिए, इसीलिए जल्दी से जल्दी भारत के हरेक गाँव में किसानों का संगठन खड़ा हो और उन्हें प्रशिक्षित करना चाहिए। किसानों का स्थाई संगठन खड़ा करना ही एक मात्र उपाय है। संगठन खड़ा करके संघर्ष के आधार पर संगठन को बढ़ाना, मा० दत्तोपंत ठेंगड़ी का ही ज्ञान था।

मा० दत्तोपंत जी अपने किसान संघ के कार्यकर्ताओं के समक्ष हमेशा छत्रपति शिवाजी महाराज तथा तानाजी बालुसरे का उदाहरण देते थे। माता जीजाबाई की आँखों मे आँसू थे कि 10 मील दूर मुगलों का ध्वज फहरा रहा है। शिवाजी खेल रहे थे और उन्होंने देखा कि माता जीजाबाई की आँखों में आँसू है केवल मां की अंगुली के दिशा निर्देश पर कि मुस्लिम मुगल किला पर ध्वज फहरा रहे हैं, अपने सरदार तानाजी बालुसरे को आदेश करते हैं कि सब काम छोड़कर तुरंत कौंडाणा पर हमला करना है। तानाजी के पुत्र का विवाह हो रहा था। लग्न के दो फेरे हुए थे। केवल दो फेरे बाकी थे। शिवाजी के आदेशानुसार लग्न अधूरा छोड़कर वे युद्ध के लिए कौंडाणा चले गए। इस तरह के ठेंगड़ी जी कहते थे कि डब्ल्यू टी ओ के कारण अब तीसरा आर्थिक महायुद्ध चालू हो गया है। अब सारा काम छोड़कर कम से कम पांच वर्ष तक राष्ट्र हित के लिए किसान संघ के काम में लगा दो। नहीं तो देश फिर से आर्थिक गुलाम हो जाएगा।

आज के राजनीतिक जीवन पर श्री ठेंगड़ी जी माननीय दीनदयाल जी का उदाहरण देते थे। जनसंघ की स्थापना के बाद चुनाव में दीनदयाल जी को खड़ा किया गया। लखनऊ ब्राह्मण बहुल क्षेत्र था। कार्यकर्त्ताओं ने कहा कि आप बाह्मण सभा को उपदेश करके एक पत्रिका निकाले। दीनदयाल जी का जवाब था 'दीनदयाल तो जीत जाएगा लेकिन जनसंघ हार जाएगा। इस तरह जनसंघ का तत्वज्ञान एकात्म मानववाद मर जाएगा।'

माननीय दत्तोपंत जी ठेंगड़ी का ऐसा मानना था कि किसान संघ के कार्यकर्त्ता का जीवन में आर्थिक व्यवहार पारदर्शक होना चाहिए। इस हेतु वे बताते थे कि दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे। संघ की आर्थिक स्थिति अति सामान्य थी। दीनदयाल जी के पास केवल चार पैसा पुराना था। एक सिक्का अच्छा नहीं था जो घिस गया था। इसलिए तीन पैसे का खाने के लिए चना लिया। कार्यालय आकर जम्मा (एक प्रकार की बनियान) उतारा। पैसा नीचे गिर गया। यह पैसा अच्छा था यानी घिसा सिक्का दूकानदार के पास चला गया था। उसी समय गए और दूकानदार को अच्छा पैसा देकर घिसा हुआ पैसा वापस लाए। बाद मे चना खाया। ऐसा था उन्‌का आदर्श और यही आदर्श सभी कार्यकर्ताओं के जीवन में होना चाहिए।

कुशल संगठक-एक समय की बात है, भारत के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की एक बैठक किसान संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री भाटिया जी के फार्म पर उ०प्र० में आयोजित की गई थी। 15 वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की इस बैठक मे दत्तोपंत जी भी उपस्थित थे। किसान संघ के दो वरिष्ठ नेता आयोजन के लिए हो रही चर्चा में बहुत गरम हो गए। गरमा-गरमी में एक नेता ने संयम तोड़ दिया और दत्तोपंत जी की ओर देखा। दत्तोपंत जी ने दोनों कार्यकर्ताओं को बुलाया और चाय-नाश्ता के लिए आधा घंटे की छुट्‌टी सभी को दे दी। माननीय दत्तोपंत जी ने उन दोनों कार्यकत्ताओं से एक ही प्रश्न पूछा कि आपकी गर्म चर्चा से क्या संगठन बढेगा? दोनों ने अपना सिर शर्म से झुका लिया। और तीन दिन की बैठक में दोनों कार्यकर्ताओं का व्यवहार प्रेममय हो गया। ऐसे थे दत्तोपंत जी कुशल संगठक। समापन भाषण में माननीय दत्तोपंत जी ने कबीर दास जी का यह दोहा सुनाया-

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

संगठन सूत्र - श्री ठेंगड़ी जी का संगठन सूत्र था- देश के हम भंडार भरेंगे, लेकिन कीमत पूरी लेगें। कम्युनिस्ट किसानो को सलाह देते हैं कि यदि सरकार लाभदायी भाव नहीं देती तो केवल अपने लिए अनाज उगाओ बेचना नहीं। लोग भूखों मरेंगे तब सरकार झुकेगी। कम्युनिस्टों की इस नीति के श्री ठेंगड़ी जी सख्त विरोधी थे।

एक बार श्री ठेंगड़ी जी ने बताया कि प० पूज्य डॉक्टर साहब ने वैभवशाली हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए  'ब्लू प्रिंट' नामक पत्रिका निकाली थी। समय-समय विविध क्षेत्रों को पावर देने का कार्य संघ करेगा। वे ऐसा कहते थे कि संघ पावर हाउस है। समस्त राष्ट्र को प्रकाश देने की क्षमता यदि संघ में होगी तभी राष्ट्र वैभवशाली बन सकता है। संघ की शाखा में ही संघ की शक्ति है। इसलिए संघ निरन्तर चलना चाहिए और बढ़ना चाहिए। दत्तोपंत जी मानते थे कि राजनीति के क्षेत्र में जाने के बाद अच्छे से अच्छा स्वयंसेवक भी भ्रष्टाचारी और उसका चरित्र भी भ्रष्ट हो जाता है। ठेंगड़ी जी कहते थे कि जो स्वयंसेवक नित्य शाखा में आता है वह अपनी प्रतिज्ञा में दृष्टि करके रोज जागत होता है। उनका यह भी मानना था कि विविध क्षेत्रों में जाने के बाद स्वयंसेवक शाखा में आना बंद कर देता है। ऐसे स्वयंसेवक पर भरोसा नहीं होता जैसे पीतल के बर्तन को और अपने मुंह को यदि रोजाना साफ नहीं करोगे तो बदबू आने लगेगी। इसलिए विविध क्षेत्र के कार्यकर्ता का भी कम से कम एक बार शाखा में आना अत्यंत आवश्यक है और राजकीय क्षेत्र में काम करने वालो को तो विशेष नियम बनाकर आना चाहिए।

संघ का कार्य भगवान का काम- हमारा कार्य भगवान का कार्य है। आस्था के भाव से यदि हम कार्य करेंगे तो हमें जरूर विजय प्राप्त होगी, अपने समापन भाषण में ठेंगड़ी जी ने गीता का यह श्लोक पढ़कर सुनाया-

यत्र योगेश्वर कृष्ण: यत्र पार्थिव धनुर्धर।
तत्र श्री विजयां कृपानिधि मलि: मम॥

‘जहां योगेश्वर कृष्ण है, जहां धनुर्धर अर्जुन है, वहां श्री लक्ष्मी, विष्णु अचल निधि महेश हैं। ऐसा मेरा मत है। फिर विजय ही विजय है।‘ यह मार्गदर्शन भी मुझे श्रद्धेय दत्तोपंत जी के सहवास में मिला।

डॉ० कुंवर जी भाई जादव