नारद भक्तिसूत्र में कहा गया है कि परम भक्तों के कारण तीर्थक्षेत्रों को तीर्थत्व प्राप्त होता है। संघ रूपी गंगा में जिन अनेक श्रेष्ठ विभूतियों के कारण पावनत्व आया उनमें दत्तोपंत भी अपने विचार, उच्चार तथा आचरणगत संघ के आदर्शों की लगन से उभर कर दिखाई देते हैं। उनके प्रसिद्धिपराडमुख स्वभाव के कारण उनके पूर्ण योगदान एवं बहुआयामी व्यक्तित्व को सभी पहलुओं के साथ आज ही सब के सामने नहीं लाया जा सकेगा।

मेरा उनसे परिचय लगभग 25-30 वर्षों का है। उनके साथ काम करने वाले मुझ जैसे सभी कार्यकर्ताओं को उनकी बुजुर्गी, स्नेह और छोटे से छोटे कार्यकर्ता की व्यवस्था संतोषप्रद हुई या नहीं इस बात पर व्यक्तिगत ध्यान देने की प्रवृत्ति का अनुभव आया ही होगा।

1974 में मैं दिल्ली में पूर्ण समय कार्यकर्ता था और दत्तोपंत की सलाह लेता रहता था। उनको जब फोन करता तो वे रात 9 बजे बुलाया करते। बैठक में देशभर के अपना-अपना काम लेकर आए हुए मजदूर संघ के छोटे-छोटे स्थानीय संगठनो के कार्यकर्ता उन्हें घेरे रहते। उनकी बातें वे मन लगाकर सुनते और विशेष पूछताछ करते जाते। उसके बाद वे मेरे साथ बाहर हरियाली पर टहलते-टहलते मेरे काम के बारे में बातचीत करते। मैंने उनसे पूछा कि क्या इन कार्यकर्ताओं की बातों में आडंबर ज्यादा नहीं होता है और उनकी समस्या सुलझाना कठिन प्रतीत होता है। आपका इतना समय लेना क्या इन लोगों के लिए उचित है। दत्तोपंत गंभीर होकर बोले- उनके लिए समय देना, उनकी बात सुनना हमारा काम ही है। तुमने देखा ही होगा कि सभी बातें बताकर उनका मन कितना निरभ्र, शांत होता है तथा अपने गांव पहुंचकर वे दुगुने उत्साह से काम में जुट जाते हैं वे भी जानते हैं कि काम होगा ही ऐसा निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। इसका दोष वे हमें अथवा संगठन को नहीं देते। कभी काम में सफलता भी मिलती है और उसका फायदा सभी स्तरों को होता है। काम नहीं भी हुआ तो संगठन मजबूत होता है, कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊँचा होता है और संगठन पर 'कामचलाऊ' होने का ठप्पा नहीं लगता।

तब तक ग्यारह-सवाग्यारह बज जाते इसलिए अब बस से जाना नहीं हो सकेगा इस बात को समझकर वे मेरे साथ एक फर्लाग तक चलकर टैक्सी के अड्‌डे तक आते, ड्राइवर को जगाकर मुझे टैक्सी में बिठा देते। साथ न आने का कितनी बार आग्रह पूर्वक अनुरोध किया, तो भी वे आया करते। दिल्ली के कड़ाके के जाड़े की रात में शायद टैक्सी वाला ध्यान नहीं देगा इससे वे शंकित होते।

हिंदुत्व सभी भारतीयों के हृदय में अमिट होता है इसका कभी-कभी वे उदाहरण दिया करते थे। कम्युनिस्ट पक्ष के प्रमुख नेता हिरेन मुखर्जी का वे बहुत आदर करते थे। उनके बारे में दत्तोपंत ने एक निजी बात बताई। विदेश के दौरे में दोनों पास-पास के कमरों में ठहरे थे। दत्तोपंत जी उनके कमरे की ओर गए। हलकी दस्तक दी। दरवाजा खुला था और हिरेन जी से घनिष्ठता थी इसलिए वे अंदर प्रविष्ट हुए। देखा तो श्रवणयंत्र कानों से निकालकर हिरेन जी तन्मयता से 'चिदानंद रूप शिवोऽहं शिवोऽहं' कह रहे थे। चेहरा आनंदमय था थोड़ी देर में आंखे खोली, दत्तोपंत को देखकर वे सकपकाए। बाद में उन्होंने कहा, “मि० ठेंगड़ी, आपने कुछ भी नहीं देखा, कुछ भी नहीं सुना।“ ऐसा ही धर्मभावना उदाहरण वे एक और कम्युनिस्ट संसद सदस्य का दिया करते। दत्तोपंत अय्यप्पा के दर्शन के लिए जाने वाले थे। प्रस्तुत संसद सदस्य ने उनके कमरे में आकर दत्तोपंत को दंडवत किया और उन्हें वह साष्टांग नमस्कार अय्यप्पा के चरणों में अर्पण करने की साश्रुनयन विनति की। हिंदुत्व का जागरण सभी भारतीयों में हो सकता है, इसी संदर्भ में वे ऐसे उदाहरण दिया करते।

एकबार मेरी उपस्थिति में उनके पास विद्यार्थी परिषद के अत्यन्त हताशाग्ररत कार्यकर्ता सलाह मांगने के लिए आए। सब बातें सहृदय पूर्वक सुनकर उन्होंने सुकुमारता से बताया कि कार्यकर्ताओं से कुछ छोटी सावधानियां कैसे छूट गई। कार्यकर्ताओं का ध्यान उन बातों की ओर दिलाया। अंग्रेजी कविता– 'बट फॉर ए नेल किंगडम वॉज लोस्ट' उद्‌धृत करके बताया कि घोड़े के नाल की एक कील निकल जाने पर उसकी उपेक्षा करने से राज्य गंवाना पड़ा। अनोखे ढंग से कार्यकर्ताओं को सूचित किया कि यदि सावधानी बरतोगे तो निश्चय ही सफलता मिलेगी। अनेक लोग उनको पूछते कि क्या पढ़ें? दत्तोपंत जी परामर्श देते कि पंसदीदा विषय का अभ्यास मूलगामी होना चाहिए, किंतु संगठन की दृष्टि से चौतरफा विषयों का पठन होना चाहिए। 'रूसी कम्युनिजम शासन का पतन होगा', उनकी यह भविष्यवाणी उसके पतन के काफी वर्ष पूर्व की तथा उस समय की थी जब सोवियत संघ अत्यंत प्रभावशाली था। भविष्यवाणी का आधार क्या है ऐसा जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने दृढता से कहा कि जो भी व्यवस्थाएं धर्म विरोधी (मानव व्यवहार नियमों की विरोधी) होती हैं, वे उनमें निहित अंतर्विरोधों के कारण नष्ट होगी। उनके द्रष्टा होने का परिचय बाद मे सबको मिला।

स्वदेशी जागरण मंच भी उनकी विलक्षण प्रतिभा का स्फुरण था। आने वाले आर्थिक साम्राज्यवादी आक्रमण की आहट सुनकर उस पर उपाय की दृष्टि से उन्होंने स्वदेशी जागरण मंच की रचना सुझायी राष्ट्र जीवन के प्रमुख क्षेत्रों में कार्यरत संघप्रणीत संस्थाओं के समन्वयन से काम करने वाला यह एक निराला संगठन है। इसका ऊपरी स्वरूप यद्यधि आर्थिक है, फिर भी विदेशी आक्रमण राष्ट्र जीवन के सभी क्षेत्रों मे तूफानी वेग से फैलेगा इस बात को उन्होने उसी वक्त भांपा था। संप्रति विश्व व्यापार संगठन, शिक्षा, सेवा, मनोरंजन, कला जैसे क्षेत्रों में भी सभी राष्ट्रीय व्यवहारों का नियमन करने के लिए प्रयत्नशील है। इन दिनों सभी राजनीतिक पक्ष एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हुए, परोक्ष रूप से मान्य करने लगे हैं कि विश्व व्यापार संगठन राष्ट्रीय हितरक्षण में बाधक है, परंतु इन्ही राजनीतिक पक्षों ने दूरदृष्टि के अभाव में, विदेशी सत्ता एवं धन के सामने दबकर तथा कभी उनका शिकार बनकर राष्ट्रहित घातक नीति अपनाई है। स्वदेशी जागरण मंच के बतौर हमने क्या पाया यह तो काल ही बताएगा। फिर भी राजनीतिक संभ्रम के दौरान इस कार्य को जोश के साथ बढावा देने का श्रेय दत्तोपंत जी को है।

स्वदेशी आन्दोलन में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को उनका अनेक प्रकार से मार्गदर्शन मिलता ही था; परन्तु उनके कुछ अलग मार्गदर्शन का भी उपयोग होता। रा०स्व० संघ की मदद् से हुए दो राष्ट्रव्यापी स्वदेशी अभियानों का उल्लेख कर उन्होंने कहा था कि इसकी गजह से मंच का नाम चारों तरफ फैल गया। कार्यकर्ता उपलब्ध हुए परंतु यह उचित नहीं कि हर समय संघ को ही यह काम हाथ में लेना पड़े। प्रभु रामचंद्र जी का उदाहरण देकर वे कहा करते थे कि सीता का अपहरण होने पर प्रभु रामचन्द्र ने अयोध्या में दूत भेजकर सेना को नहीं बुलाया बल्कि स्वतंत्र सेना गठित करके रावण को नष्ट किया। हमें भी इस क्षेत्र में नए कार्यकर्ताओं का दल खड़ा करना पड़ेगा। वे ऐसा आग्रही प्रतिपादन करते थे।

डॉ० हेडगेवार को स्वयंस्फूर्त एवं विचारवान स्वयंसेवकों की अपेक्षा थी, उसी तरह दत्तोपंत आग्रहपूर्वक प्रतिपादित करते थे कि स्वदेशी का कार्यकर्ता कार्यक्षेत्र में स्वप्रेरणा से काम करने वाला हो और यथाप्रंसग स्वबुद्धि से निर्णय लेकर उसे कार्यवाही में लाने वाला होना चाहिए। सभी कार्यकर्ताओं को वे एक वाक्य लिख लेने के लिए कहते थे 'इट इज वैरी इमपोर्टेन्ट टू बी राईट एंड एक्टीव देन टू बी करेक्ट एंड पेसीव' केवल 'बाबा वाक्याम्' अथवा केन्द्र से आदेश पाने की प्रतीक्षा करते रहना उचित नहीं। विख्यात लेखिका पर्ल बक ने महात्मा गांधी के संदर्भ में सच्चे महापुरुष के तीन लक्षण बताए हैं-भव्य सपना, स्वप्न पूर्ति के लिए व्यावहारिक योजना एवं उच्च सिद्धांत तथा ध्येय पर अविचारित निष्ठा। डॉ० हेडगेवार, पू० गुरूजी इनकी परंपरा में दत्तोपंत के संदर्भ में भी ऐसा ही कहना चाहिए। विचारक, द्रष्टा, अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठनों में राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाले भा० म० संघ को देश में प्रथम क्रमांक पर स्थापित करने वाला कामयाब नेता संघ का आदर्श साकार करने वाला मूर्तिमंत आदर्श स्वयं सेवक, ऐसा बहुआयामी उत्तुंग व्यक्तित्व आज काल के गाल में समा गया है। उनका दिव्यत्व आंशिक ही सही, अपने में प्रकट करके भारत माता के परम वैभव के लिए निरंतर प्रत्यनशील रहना ही उनको वास्तविक श्रद्धांजलि होगी।

रविन्द्र महाजन