श्री दत्तोपत ठेंगड़ी का निधन भारतीय मजदूर संघ आन्दोलन के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वे भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक थे और उनकी लगन और ईमानदारी के परिणाम स्वरूप यह एक मजबूत शक्ति बन गया। 1989 में श्रम-मंत्रालय द्वारा भारतीय मजदूर संघ को सबसे बड़ा मजदूर संगठन घोषित किया गया। श्री ठेंगड़ी को इस बात का श्रेय देना होगा कि उन्होंने भारतीय मजदूर संघ को वह स्थान दिलाया जिससे कांग्रेस और वामपंथ के मजदूर संगठन चकित हो गए। 31 दिसम्बर, 1989 को भारतीय मजदूर संघ के सदस्यों की संख्या 31.2 लाख थी, जबकि इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस की 27.1 लाख, सेन्टर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स अर्थात सीटू की 18 लाख, हिन्द मजदूर सभा की 14.8 लाख और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की केवल 9.2 लाख थी। भारतीय मजदूर संघ को सर्वोच्च स्थान दिलाने के पीछे श्रमिकों की मागों के लिए वास्तविक संघर्ष करना था ताकि उनकी शिकायतों का निपटारा हो सके। श्री ठेंगड़ी के नेतृत्व में भारतीय मजदूर संघ का एक अद्वितीय लक्षण यह रहा कि इसने अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ से श्रम समस्याओं के अध्ययन के लिए प्रोजेक्ट के रूप में भी कोई सहायता लेने से इंकार कर दिया। ठेंगड़ी जी का दृढ़ मत था कि अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं या उद्योग संघों से सहायता स्वीकार करने का अर्थ है भारतीय मजदूर संघ को कमजोर बनाना और इसका श्रम-आन्दोलन पर दुष्प्रभाव ही पड़ता है।

मुझे श्री ठेंगड़ी जी के साथ पुणे में दो दिन बिताने का अवसर मिला जहां मैं भारतीय मजदूर संघ के निमन्त्रण पर नये 'आर्थिक सुधारों का श्रम पर प्रभाव' विषय पर भाषण देने गया था। ठेंगड़ी जी ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की और इसमें स्वतंत्र और निरंकुश रूप में विचारों का आदान-प्रदान हुआ। इस महान नेता के प्रवचन से बहुत प्रेरणा मिली जब उन्होंने श्रम पर आर्थिक सुधारों के दुष्परिणामों पर अपने स्पष्ट विचार रखें। वे लाभदायक सार्वजनिक उद्यमों के विनिवेश के कट्‌टर विरोधी थे और उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की भाजपा के नेतृत्व में चल रही सरकार को विनिवेश को बढावा न देने का आग्रह किया। इस दृष्टि से उनके विचार वामपंथी संगठनों के अधिक करीब थे। अत: वे भारत मे “आर्थिक स्वतंत्रता” के आन्दोलन की अगवाई कर रहे थे और इसी लिए उन्होंने स्वदेशी जागरण मंच को यह सीख दी कि वह राजकीय नीतियों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द करें ताकि देश की संप्रभुता की रक्षा की जा सके।



प्रो० रुद्रदत्त
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री