“स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है” की घोषणा करने वाले लोकमान्य तिलक के पावन जन्मदिवस पर 23 जुलाई, 1955 के दिन भोपाल में भारतीय मजदूर संघ की स्थापना हुई। उस दिन अखिल भारतीय सम्मेलन में श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी ने भारतीय मजदूर संघ की स्थापना करते हुये ‘रोज़गार मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है’ की घोषणा करके इस नवोदित महासंघ का एक ही वाक्य में समूचा उद्देश्य रख दिया। आज उनके यशस्वी नेतृत्व में भारतीय मजदूर संघ प्रगति करता हुआ, देश के श्रमिक क्षैत्र का एक प्रतिनिधि संगठन बन चुका है।


विश्वकर्मा जयन्ती पर राष्ट्रीय श्रम दिवस का आयोजन करके उन्होंने श्रमिक क्षेत्र में जहां स्वदेश भक्ति व भारतीयता की अखल जगाकर मजदूरों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया, वहां ही ‘काम और आराम (हड़ताल) दोनों मौलिक अधिकार है, उनका छीना जाना सहन नहीं किया जा सकता’ की गर्जना करके श्रमिकों के व्यापक अधिकार की रक्षा का दायित्व भी ग्रहण किया है।
वे सारे देश में ‘‘पैसे के समान पसीने का शेयर’’ निश्चित कराने का अखल जगा रहे है और मजदूर को मालिक की स्थिति में बैठाना चाहते है। उनका कहना है ‘‘राष्ट्रीयकरण नहीं उद्योगों का श्रमकीकरण करो, क्योंकि राष्ट्रीयकरण में तो केवल मालिक ही बदलते है, मजदूर तो फिर भी गुलाम ही रहता है। इस संबंध में श्री ठेंगड़ी जी का सूत्र यह है कि, ‘‘राष्ट्र का उद्योगिकरण’’ ‘‘उद्योगों का श्रमिकीकरण’’ तथा ‘‘श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण’’- (Nationalise the Labour, Labourise the Industry, Industralise the Nation)। गरीबी और बेकारी से मुक्ति पाने के लिये ‘पूंजी प्रधान अर्थ रचना के स्थान पर श्रम-प्रधान अर्थ रचना की मांग करके उन्होंने भारतीय मजदूर संघ के उद्देश्यों के सभी पहलुओं को व्यक्त किया है।
उपर्युक्त विश्लोषणों से जहां श्री ठेंगड़ी जी के मार्गदर्शन में भारतीय मजदूर संघ का सैद्धान्तिक परिचय मिलता है, वहां उनका भी संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक है।
वर्धा जिले के आरवी गांव में श्री दत्तोपंत का जन्म हुआ। उनके पिता स्व. श्री बापूराव दाजी ठेंगड़ी वर्धा जिले के प्रसिद्ध वकील थे। पिता ने सन् 1920 के 10 नवम्बर को जन्म लेने वाले इस बालक को पढा लिखाकर अपने समान वकील बनाया और उनसे बहुत सी अपेक्षाएं रखी। परन्तु उनके इस मित्भाषी पुत्र को छल-प्र्रपंचयुक्त दुनियादारी और उसके बंचक रास्ते किंचिद्अपि आकर्षित न कर सके। अतः उस भोगवादी जीवन से परांगमुख हो उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में अपना तन मन सभी राष्ट्र सेवा में अर्पित कर दिया।
अनेक वर्षों तक मद्रास, केरल एवं बंगाल प्रांतों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में श्री ठेंगड़ी जी ने कार्य किया। सन् 1950 में आप अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् विदर्भ प्रांत के अध्यक्ष हुये और साथ ही इंटक के विभिन्न श्रमिक युनियनों के उतरदायी पदों पर नियुक्त रहे। सन् 1950-51 के कार्यकाल में आप इंटक के प्रादेशिक संगठन-मंत्री मनोनीत किये गये और इसी बीच इंटक के अखिल भारतीय प्रतिनिधि (जनरल कौन्सिलर) भी चुने गये।
अनेकांगी योग्यताओं के कारण आगे चलकर श्री ठेंगड़ी जी को मध्य प्रदेशीय हस्त-कर्घा-उद्योग-कॉन्फ्रेन्स के परामर्श दाता (एडवाईजर) के रूप में मनोनीत किया गया तथा 1953 से 1955 की अवधि में मध्यप्रदेश किरायेदार संघ के संगठन मंत्री के रूप में ही इन्होंने कार्य किया। सन् 1954-55 के कार्यकाल में आप ‘सेन्ट्रल रेवले मेल सर्विस यूनियन’ के अध्यक्ष चुने गये औश्र उसी अवधि में आपने ‘मध्य प्रदेशीय नागरिक स्वाधिनता समिति’ नामक संस्था भी संगठित की। सन् 1959 में श्री ठेंगड़ी जी को जीवन बीमा निगम के फील्ड वर्कर्स एसोशिएशन के अखिल भारतीय सम्मेलन की अध्यक्षता करने का गौरव प्राप्त हुआ है।
भारतीय इतिहास, दर्शन, अर्थनीति, समाजनीति, राजनीति आदि विषयों के पारंगत तथा संस्कृत, हिन्दी, अंगेजी, मराठी एवं बंगाली आदि भाषाओं पर पूरा अधिकार रखने वाले, इस अत्यन्त सरल और मृदुभाषी नेता को आज भारत के कौने कौने में समान रूप से आदर प्राप्त है।
श्री ठेंगड़ी जी के अव्रिशान्त एवं ध्ययेनिष्ठ जीवन से स्फूर्ति लेकर आज एक विशाल कारवां चल रहा है। वह दिन दूर नहीं, जिस दिन भारत का मजदूर, विदेशी नेतृत्व से मुक्त होकर राष्ट्रीय नेतृत्व में अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ता हुआ अपने स्वत्व को प्राप्त करेगा और संतुष्ट, सुखी तथा सम्मानित जीवन व्यतीत करते हुये भारत माता की सेवा में अपना सर्वस्व निछावर कर देगा ।

(1963 मे प्रकाशित, भारतीय मज़दूर संघ के उत्तरप्रदेश मे 1953 से 1963 तक संपन्न अधिवेशनों मे दत्तोपन्त जी के उद्बोधनों का संकलन मे श्री रामनरेश सिंहजी द्वारा लिखित दत्तोपन्तजी का संक्षिप्त परिचय।)

– रामनरेश सिंह उपाख्य बडे भाई